डॉक्टरों की पत्नियां बोलीं- देश की सेवा का मौका बार-बार नहीं आता, अंजाम जो भी हो, इसे निभाएंगे

कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए जिला अस्पताल के डॉक्टर दिन रात जी-जान से जुटे हुए हैं। वे 10 दिन से अपने घर तक नहीं गए हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में उनकी पत्नियां घर में रहकर बच्चों के साथ ही अपने सास-ससुर की भी देखभाल कर रही हैं। इस तरह दोनों ही अपना-अपना कर्तव्य बखूबी निभा रहे हैं। दैनिक भास्कर ने डॉक्टरों की पत्नियाें से बातचीत कर जाना कि वे इस संकट में कैसे अपने परिवार की देखरेख कर पा रही हैं और उनकी दिनचर्या में क्या परिवर्तन आया है।


देश के लिए अपने पति का साथ देने को संकल्पित


जिला अस्पताल में पदस्थ सर्जन डॉ. दिनेश खत्री 10 दिनों से अपने घर तक नहीं गए। ऐसी स्थिति में उनकी पत्नी डॉ. गीता खत्री (प्राइवेट प्रेक्टिशनर) पर पूरे परिवार की भी जिम्मेदारी आ गई है। वे भोपाल में बच्चों के साथ रहती हैं। डॉ. खत्री के बड़े बेटे कुशाग्र वर्तमान में नीट की तैयारी कर रहे हैं और छोटा बेटा प्रयास 10वीं की एग्जाम दे चुका है। डॉ. गीता खत्री का कहना है कि ऐसा मौका बार-बार नहीं आता। अंजाम चाहे जो भी हो, देश की सेवा का मौका मिला है तो हम साथ देने को तैयार हैं। 


पहले घर के काम फिर बच्चों को पढ़ाती हैं


जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. विनोद परमार भी कोरोना वायरस के संदिग्ध मरीजों की सेवा में जुटे हुए हैं, वहीं उनकी पत्नी रजनी परमार पूरे घर को संभाल रही है। इस दौरान उनकी तबीयत भी बिगड़ गई थी, फिर भी उन्होंने अकेले रहते हुए हार नहीं मानी। वे बताती हैं कि पहले वे घर के सभी काम निपटाती है, फिर बच्चों को घर पर ही उनकी पढ़ाई करा रही हैं। ताकि उन्हें स्कूल नहीं लगने का गेप का अहसास न हो। पूरे विश्व में जिस तरह से इस महामारी का कहर बढ़ रहा है, उसको देखकर चिंता होना स्वभाविक है।



संकट में पति मरीजों की सेवा कर रहे, यह बड़ी बात


जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. एमएल अहिरवार भी 10 दिनों से अपने घर पर नहीं गए हैं। उनकी पत्नी अरुणा अहिरवार भोपाल में घर संभाल रही हैं। उनका कहना है कि अकेले होने के कारण कुछ दिक्कतें तो आती है, लेकिन इस संकट के दौर में उनके पति मरीजों की सेवा में लगे हैं, यह बहुत बड़ी बात है। वे अपने पति से मोबाइल पर बात करती रहती हैं।